Friday 14 March, 2008

हॉकी और हठ....






"मेरे पास कोई कॉफ़ी मशीन नहीं है जिससे तुरंत-फुरंत नतीजे सामने आ जाएँ। हमने चीज़ों को व्यवस्थित किया और जिसका नतीज़ा आने में कुछ वक्त लगेगा।" जी हां बात हॉकी की हो रही है और ये हम नहीं गिल साहब कह रहे हैं। ओलंपिक में भद्द पिटवाने के बाद भारतीय हॉकी संघ से चीफ को अभी भी वक्त का इंतजार है। इस्तीफा नहीं देगें? दे दिया तो आखिर कांटे जैसी तनी मूछ का क्या। जो सहकर्मी महिला द्वारा लगाया गया छेड़खानी के आरोप का भार भी झेल गई।



और वैसे भी ये तो हॉकी का खेल है इसमें हार जीत तो होती ही रहती है, कोई क्रिकेट थोड़ी ना है कि विज्ञापन नहीं मिलने से दिवाला पिटने की चिंता सताने लगे। अरे भइया ये तो पहले से ही दिवाला पिटा संघ है अब इसे कोई क्या पीटेगा। यही आस शायद के.पी.एस गिल साहब को ढाढस बंधा रही है। तो क्या माना जाए गिल साहब अगले वर्ल्ड कप तक चीफ की कुर्सी पर मजबूत जोड़ से चिपक गए हैं, और ये गठजोड़ पूरी तरह बेड़ा गर्क होने के बाद ही टूटेगा।





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