Tuesday 29 April, 2008

हुजूर बधाई देने का वक्त आ गया है....











आखिर जीत गई मुंबई इंडियन। नामचीन खिलाड़ियों से सजी संवरी मुंबई इंडियन टीम पर हार की गर्द कुछ यूं जम चुकी थी कि उसे हटाने की फितरत में कुछ खिलाड़ी टूर्नामेंट से ही हाथ धो बैठे। टीम के मालिकान तो मानो इस टीम से सारी उम्मीद ही छोड़ बैठे थे। खबरे भी अजीबोगरीब आईं कुछ खबरिया चैनलों ने तो यहां तक कह डाला कि हार से नाराज मुकेश अंबानी ने सचिन को जन्मदिन का बधाई संदेश देने की औपचारिकता तक नहीं निभाई, क्योंकि वो अब तक सचिन के नहीं खेलने से नाराज हैं।

सच्चाई जो भी हो आखिरकार खिलाड़ियों पर जमीं गर्द हटी और वो पहचान में आए। जयसूर्या बल्ले से भले ही कुछ नहीं कर पाए लेकिन गेंदबाजी ऐसी सधी की कि बड़े-बड़े सूरमाओं के बल्ले जंग खा गए। चार औवर में चौदह रन और तीन विकेट वो भी टी-ट्वन्टी क्रिकेट में बेमिसाल ही कहा जाएगा।

महज चार रन पर जयसूर्या ने गांगुली का बेहतरीन कैच लपक लिया। इस विकेट के साथ जो नाइट राइडर्स के तारे गिनने का सिलसिला शुरू हुआ वो लक्ष्मी रतन शुक्ला के आने बाद ही थम सका। भला हो इस युवा क्रिकेटर का जो इसने कोलकाता नाइट राइडर्स को तीन अंकों की सवारी नसीब कराई। बाद में आगरकर और ईशांत ने अच्छी शुरुआत जरूर की लेकिन उथप्पा और ब्रेबो ने आखिरकार उस स्कोर की हवा निकाल दी। उथप्पा ने इस जीत को अपने पूर्व कप्तान हरभजन को समर्पित कर दिया। इस समर्पण में श्रीसांत के लिए आगे आने वाले बुरे दिनों की आशंका साफ झलक रही है। खैर................

मुंबई इंडियन रंगत में दिखाई दी....तो अब मैदान में आप भी आइए हुजूर (सचिन-मुकेश अंबानी) गिले शिकवे दूर कर बधाई देने का वक्त आ गया है।

Monday 28 April, 2008

2.9 करोड़ का तमाचा....





(गुस्ताखियों का शहंशाह)
थप्पड़ की गूंज सुनाई दी...खूब सुनाई दी। ये थप्पड़ ना तो दादा ठाकुर का था और न ही डॉ. डैंग की गाल पड़ जड़ा गया था। ये सनी पा जी के हाथ का ढाई किलो का हथौड़ा भी नहीं था, जिसके पड़ने पर आदमी उठता नहीं....उठ जाता है। ये थप्पड़ तो भज्जी “पा....जी” की बदमिजाजी का था। जो अपने ब्रेक डांसर क्रिकेटर श्रीसांत की गाल नूं चस्पा किया गया था।

क्रिकेट के मैदान में विजेता टीम के खिलाड़ी श्रीसांत को टेसुए बहाता देख पहले तो लोगों को लगा कि वो जज्बात की रव में विनोद कांबली को मात देने के इरादे से ऐसा कर रहे हैं, पर बात कुछ और थी।

लगातार दो हार के बाद मिली जीत का सुकून कप्तान युवराज आंखे बंद कर महसूस कर रहे थे, वहीं टीम की मालकिन सोंड़ी कुड़ी प्रीति जिंटा ब्रेट ली के गले में बांहें डाल कर बधाईयां देते अघा नहीं रहीं थीं।

अब ऐसे माहौल में श्रीसांत के टेसुए दिखे वीआरवी सिंह और कुमार संकारा को। प्रीति को जल्दी फुर्सत मिलती न देख ये दोनों श्रीसांत को शांत कराने आ धमके लेकिन वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे...श्रीसांत रोए और हुलक-हुलक कर रोए। उन्हें उम्मीद थी मालकिन आंसू पोछने आएंगी लेकिन उन्होंने तो पत्रकारों को टके सा जवाब दे दिया कि टीम की पहली जीत है वो अभी सिर्फ उसे ही इन्ज्वाय कराना चाहती हैं।

सचमुच रेस कोर्स में दांव लगाने के बाद रेसलर घोड़े के चोटिल खुरों की फिक्र नहीं करता। उसे तो बस अंजाम का अंदेशा सताता रहता है।


जीत का सुकून भोगने के बाद जब कप्तान युवराज होश में आए तो उन्हें पता चला कि हरभजन ने उनके करीबी दोस्त श्रीसांत के गाल पर तमाचा बजा दिया है। वो भी बस इत्ती सी बात पर कि श्रीसांत भज्जी पाजी को हार्डलक बोलने चले गए थे। युवराज ने पुरस्कार वितरण के दौरान हरभजन को अपने हाव-भाव से जता दिया कि वो हरभजन के दोस्त के साथ ही विरोधी खेमें के कप्तान भी हैं।

दोस्त के तेवर देखकर हरभजन बैकफुट पर आए और श्रीसांत को अपना छोटा भाई बताने लगे। श्रीसांत भी मामले को रफा-दफा करने वाले बयान देने लगे उन्होंने भी हरभजन को अपना बड़ा भाई बताया, पर इस भाई चारे का अंतर साफ दिखा श्रीसांत जहां मैच के दौरान उत्तेजना को आम बात बता रहे थे वहीं हरभजन अपनी गलती को सिरे से नकार रहे थे। बमक रहा था तो आस्ट्रेलियाई मीडिया वो न हरभजन को बख्शने के मूड में था और न ही श्रीसांत को। उसे तो पिछली करतूतों को भी सच साबित करने का मौका मिल गया था।

सच भी है दूध धुला दोनों में से कोई है भी नहीं। पहले भी इन दोनों के बदमिजाजी के चर्चे हुए हैं लेकिन क्रिकेट के महासागर में (हिंस्दुस्तान) इन दोनों के लिए भावना का ऐसा ज्वार भाटा आया कि हर कोई सुनामी को डर गया। नतीजतन दोनो बरी हो गए। पर इस बार किसी सुनामी का डर नहीं था इस लिए इन्हें सबक सिखाने की ठानी गई।

मामला बिगड़ता देख हरभजन ने ढिठाई छोड़ गलती मान ली और माफी मांग ली। साथ ही भरोसा भी दिया आगे कभी ऐसी गलती नहीं दोहराने का। भज्जी पा जी के गलती स्वीकार करते ही उनकी टीम के कोच लालचंद राजपूत भी कटघरे में गए क्योंकि वो घटना स्थल पर मौजूद रहते हुए उसे रोकने में नाकाम रहे थे। इसलिए उन्हें अपनी आधी मैच फीस गंवानी पड़ी, जबकि हरभजन को लगा पूरे दो करोड़ नब्बे लाख रुपये का चूना और साथ ही ग्यारह मैचों का प्रतिबंध।

हरभजन को क्रिकेट जगत में आक्रामक और कभी हार नहीं मानने वाले खिलाड़ी के रूप में जाना जाता था। उनकी इस आक्रामकता को अरबों की जनसंख्या का समर्थन भी हासिल था। भज्जी ने अपनी करतूत से पैसा तो गंवाया ही भारतीय जन समुदाय का अब तक उन पर कायम भरोसा भी खो दिया। तो क्या वापसी के बाद भज्जी के खेल की आक्रामकता पर भी प्रभाव पड़ेगा। इस सवाल का जवाब बारह मैचों के बाद यानी भज्जी की वापसी के साथ ही मिल सकेगा। रही बात भारतीय टीम के लिए हरभजन की अहमियत की तो वने डे टीम के कप्तान धोनी ने हरभजन पर फैसले से पहले उनकी करतूत को माफ करने के योग्य बता कर जता दी है।

Wednesday 16 April, 2008

किस्मत कनेक्शन...







किस्मत कनेक्शन या दिल का रिश्ता। हम बात कर रहे हैं भारतीय टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा की। सानिया के खेल ने विश्व टेनिस जगत में भारत की मौजूदगी शिद्दत से दर्ज कराई। अपने खेल से सानिया ने करोड़ों खेल प्रेमियों का दिल जीता। साथ ही उनके सोंणे रूप ने लाखों ऐसे लोगों का खेल से नाता जोड़ दिया जो लॉन टेनिस की A B C D नहीं जानते थे।

सानिया के रूप जाल में ऐसे लोग भी फंसे जिन पर अब तक बॉलीवुड की कई सुंदरियां वारी-न्यारी हो चुकी हैं। जी हां शाहिद कपूर। करीना, अमृता राव, विद्याबालन जैसी सुंदरियों को मोह लेने वाले शाहिद कपूर अब सानिया पर फिदा हैं।

हाल ही में शाहिद को मुंबई के लोखंडवाला कॉम्पलेक्स में सानिया के साथ देखा गया है। सूत्रों ने बताया कि शाहिद और सानिया मर्सीडीज बेंज के अंदर बैठे हुए थे और एक दूसरे की कंपनी एंन्जॉय कर रहे थे। ग्रे टी शर्ट और ब्लू जींस शाहिद पर फब रही थी तो येलो टी शर्ट और ब्लैक जींस में सानिया ग़जब ढा रहीं थी। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि शाहिद सानिया को अपनी आने वाली फिल्म “किस्मत कनेक्शन” के गाने सुनवाने के लिए ले गए थे।
अब सच जो भी हो पर इतना तो तय है कि करीना से जुदाई के बाद शाहिद की तन्हाई को सानिया बांटती नज़र आ रही हैं। दोनों के बीच कोई और कनेक्शन हो न हो पर सुर ताल का कनेक्शन तो इस ख़बर के बाद मानना ही पड़ेगा।

Monday 14 April, 2008

गरजे गांगुली...



दमदार दादा........

85 रनों की मैच जिताऊ पारी के बाद दादा ने फिर जता दिया कि वो वन-डे के लिए भी तैयार हैं। पानी निचोड़ती गर्मी में उनका शरीर भी लगातार गवाही दे रहा था कि इस बार चयनकर्ताओं के सामने फिटनेस का बहाना नहीं चलने वाला, और अगर निर्लज्जता पर उतारू होकर उन्होंने उस फार्मूले को दोहराना-तिहराना चाहा तो कम से कम किसी के गले नहीं उतरने वाला।

अहमदाबाद में पिच पर घास देखते ही कप्तान कुंबले की भौंहें तन गई थी, उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर भी कर दी थी कि वो पिच से खुश नहीं हैं। मेजबान कप्तान की नाराजगी जायज भी थी। अब तक देश के एक मात्र तेज और बाउंसी विकेट मोहाली में अपने रणबांकुरों का खेल हरियाले विकेट पर किस कदर मुहाल होता रहा है ये सभी जानते हैं।

खैर... कप्तान की आशंका को हकीकत बनने में तीन दिन भी नहीं बीते, नतीजा सामने था, अहमदाबाद में हम न सिर्फ हारे बल्कि जोरदार तरीके से हारे। हर किसी को लगा कि ये हमारी हार है। हर काम ढिढोंरा पीट कर करना हमारी पुरानी आदत है। पांच दिन का खेल महज तीन दिन में खत्म हो गया। पहली पारी तीन अंको को तरस गई थी वहीं दूसरी पारी में हार को अपने बल्ले से कुछ देर तक दूर ढकेलने की कोशिश एक ऐसे बल्लेबाज ने कि जिसे कब चय़न समित अछूत मान लेती और उसे बिरादरी में शामिल कर लेती ये बात अभी तक क्रिकेट के जानकारों समेत क्रिकेट से जरा भी नाता नहीं रखने वालों की समझ में नहीं आया है।

जी हां बात दादा यानी गांगुली की ही कर रहे हैं। अच्छे प्रदर्शन के बावजूद आस्ट्रेलिया सीरीज के बाद उन्हें वन-डे टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। तर्क ये दिया गया कि वन-डे में उम्र दराज खिलाड़ियों की फिटनेस अकसर मात खा जाती है। गांगुली को भी शायद फिटनेस की कसौटी पर ही कसा गया था। क्योंकि रिकार्ड तो उन्हें टीम से बाहर बैठाने की इजाजत दे नहीं रहे थे। लेकिन दक्षिण अफ्रीका के साथ जब टेस्ट मैच टीम का ऐलान किया गया तो गांगुली का नाम देखकर मैं खुश भी बहुत हुआ और हैरान भी उतना ही।

अगर एक दिन के खेल में गांगुली की उम्र उनका साथ नहीं दे रही थी और उनके निहायत बेहतरीन प्रदर्शन पर फिटनेस भारी पड़ रही थी तो आखिर पांच दिन के खेल में शरीर कैसे साथ निभाने लगा। पहले टेस्ट में चयनकर्ता अपनी चाल में कामयाब रहे, गांगुली को लगातार टीम से अंदर बाहर किया गया इसका फर्क तो आखिर आत्मविश्वास पर पड़ना ही था। हुआ भी वही। लेकिन गांगुली को अच्छी तरह पता था कि अभी नहीं तो कभी नहीं। दूसरे टेस्टमैच की दूसरी पारी में पांचवें क्रम पर बल्लेबाजी करने आए सौरव गांगुली ने टिक कर खेलते हुए 87 रन बनाए। उन्होंने 149 गेंदों का सामना किया और 8 चौके लगाए। हालांकि गांगुली भारत की हार को ज्यादा देर नहीं टाल सके और आउट हो गए। (शतक से चूके कहना बेमानी होगा) भारत पारी की हार, हार गया। लेकिन गांगुली थे भारतीय टीम के सर्वाधिक स्कोरर।

अब बारी थी सीरीज के तीसरे और अंतिम टेस्ट मैच की, जो कानपुर में होना था। लेकिन ग्रीनपार्क के मैदान में खेले जाने वाले इस निर्णायक मैच में पिच पर ग्रीनरी का नामोनिशान नहीं था।शायद क्यूरेटर को पता चल चुका था कि इस बार स्पोर्टी पिच देने के फेर में जरा भी चूक हुई तो सीरीज की हार का ठीकरा उन्हीं पर फूटने वाला है। इसलिए पहली गेंद ही टिप्पा खाते धूल उड़ाती नज़र आई। यहां भारतीय रणबांकुरों ने तीन दिन में ही बराबरी का परचम गाड़ दिया। इस बार भी गांगुली शतक से तो चूके लेकिन टीम के सर्वाधिक स्कोरर बनने में एक बार फिर कामयाब रहे। सच तो ये है कि गांगुली के रनों ने ही जीत की आधार सिला रखी। इस बार भी उन्होंने पहली पारी में 87 रन बनाए। अब इस प्रदर्शन के बाद उन्हें वन-डे टीम से बाहर का रास्ता दिखाया जाए या फिर उन्हें मिले खेलने का न्यौता। गांगुली को इस बात से अब कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनकी पहचान के लिए जो सबसे जरूरी था (रन बनाना) वो तो उन्होंने किया ही साथ ही वो भी किया जो क्रिकेट के जेंटलमैन को कभी गंवारा नहीं रहा। यानी बेबाक बयानी।....गांगुली ने खम ठोंककर एक बार फिर कहा वन-डे के लिए भी तैयार हूं।