Monday 14 April, 2008

गरजे गांगुली...



दमदार दादा........

85 रनों की मैच जिताऊ पारी के बाद दादा ने फिर जता दिया कि वो वन-डे के लिए भी तैयार हैं। पानी निचोड़ती गर्मी में उनका शरीर भी लगातार गवाही दे रहा था कि इस बार चयनकर्ताओं के सामने फिटनेस का बहाना नहीं चलने वाला, और अगर निर्लज्जता पर उतारू होकर उन्होंने उस फार्मूले को दोहराना-तिहराना चाहा तो कम से कम किसी के गले नहीं उतरने वाला।

अहमदाबाद में पिच पर घास देखते ही कप्तान कुंबले की भौंहें तन गई थी, उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर भी कर दी थी कि वो पिच से खुश नहीं हैं। मेजबान कप्तान की नाराजगी जायज भी थी। अब तक देश के एक मात्र तेज और बाउंसी विकेट मोहाली में अपने रणबांकुरों का खेल हरियाले विकेट पर किस कदर मुहाल होता रहा है ये सभी जानते हैं।

खैर... कप्तान की आशंका को हकीकत बनने में तीन दिन भी नहीं बीते, नतीजा सामने था, अहमदाबाद में हम न सिर्फ हारे बल्कि जोरदार तरीके से हारे। हर किसी को लगा कि ये हमारी हार है। हर काम ढिढोंरा पीट कर करना हमारी पुरानी आदत है। पांच दिन का खेल महज तीन दिन में खत्म हो गया। पहली पारी तीन अंको को तरस गई थी वहीं दूसरी पारी में हार को अपने बल्ले से कुछ देर तक दूर ढकेलने की कोशिश एक ऐसे बल्लेबाज ने कि जिसे कब चय़न समित अछूत मान लेती और उसे बिरादरी में शामिल कर लेती ये बात अभी तक क्रिकेट के जानकारों समेत क्रिकेट से जरा भी नाता नहीं रखने वालों की समझ में नहीं आया है।

जी हां बात दादा यानी गांगुली की ही कर रहे हैं। अच्छे प्रदर्शन के बावजूद आस्ट्रेलिया सीरीज के बाद उन्हें वन-डे टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। तर्क ये दिया गया कि वन-डे में उम्र दराज खिलाड़ियों की फिटनेस अकसर मात खा जाती है। गांगुली को भी शायद फिटनेस की कसौटी पर ही कसा गया था। क्योंकि रिकार्ड तो उन्हें टीम से बाहर बैठाने की इजाजत दे नहीं रहे थे। लेकिन दक्षिण अफ्रीका के साथ जब टेस्ट मैच टीम का ऐलान किया गया तो गांगुली का नाम देखकर मैं खुश भी बहुत हुआ और हैरान भी उतना ही।

अगर एक दिन के खेल में गांगुली की उम्र उनका साथ नहीं दे रही थी और उनके निहायत बेहतरीन प्रदर्शन पर फिटनेस भारी पड़ रही थी तो आखिर पांच दिन के खेल में शरीर कैसे साथ निभाने लगा। पहले टेस्ट में चयनकर्ता अपनी चाल में कामयाब रहे, गांगुली को लगातार टीम से अंदर बाहर किया गया इसका फर्क तो आखिर आत्मविश्वास पर पड़ना ही था। हुआ भी वही। लेकिन गांगुली को अच्छी तरह पता था कि अभी नहीं तो कभी नहीं। दूसरे टेस्टमैच की दूसरी पारी में पांचवें क्रम पर बल्लेबाजी करने आए सौरव गांगुली ने टिक कर खेलते हुए 87 रन बनाए। उन्होंने 149 गेंदों का सामना किया और 8 चौके लगाए। हालांकि गांगुली भारत की हार को ज्यादा देर नहीं टाल सके और आउट हो गए। (शतक से चूके कहना बेमानी होगा) भारत पारी की हार, हार गया। लेकिन गांगुली थे भारतीय टीम के सर्वाधिक स्कोरर।

अब बारी थी सीरीज के तीसरे और अंतिम टेस्ट मैच की, जो कानपुर में होना था। लेकिन ग्रीनपार्क के मैदान में खेले जाने वाले इस निर्णायक मैच में पिच पर ग्रीनरी का नामोनिशान नहीं था।शायद क्यूरेटर को पता चल चुका था कि इस बार स्पोर्टी पिच देने के फेर में जरा भी चूक हुई तो सीरीज की हार का ठीकरा उन्हीं पर फूटने वाला है। इसलिए पहली गेंद ही टिप्पा खाते धूल उड़ाती नज़र आई। यहां भारतीय रणबांकुरों ने तीन दिन में ही बराबरी का परचम गाड़ दिया। इस बार भी गांगुली शतक से तो चूके लेकिन टीम के सर्वाधिक स्कोरर बनने में एक बार फिर कामयाब रहे। सच तो ये है कि गांगुली के रनों ने ही जीत की आधार सिला रखी। इस बार भी उन्होंने पहली पारी में 87 रन बनाए। अब इस प्रदर्शन के बाद उन्हें वन-डे टीम से बाहर का रास्ता दिखाया जाए या फिर उन्हें मिले खेलने का न्यौता। गांगुली को इस बात से अब कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनकी पहचान के लिए जो सबसे जरूरी था (रन बनाना) वो तो उन्होंने किया ही साथ ही वो भी किया जो क्रिकेट के जेंटलमैन को कभी गंवारा नहीं रहा। यानी बेबाक बयानी।....गांगुली ने खम ठोंककर एक बार फिर कहा वन-डे के लिए भी तैयार हूं।

No comments: