Monday 28 April, 2008

2.9 करोड़ का तमाचा....





(गुस्ताखियों का शहंशाह)
थप्पड़ की गूंज सुनाई दी...खूब सुनाई दी। ये थप्पड़ ना तो दादा ठाकुर का था और न ही डॉ. डैंग की गाल पड़ जड़ा गया था। ये सनी पा जी के हाथ का ढाई किलो का हथौड़ा भी नहीं था, जिसके पड़ने पर आदमी उठता नहीं....उठ जाता है। ये थप्पड़ तो भज्जी “पा....जी” की बदमिजाजी का था। जो अपने ब्रेक डांसर क्रिकेटर श्रीसांत की गाल नूं चस्पा किया गया था।

क्रिकेट के मैदान में विजेता टीम के खिलाड़ी श्रीसांत को टेसुए बहाता देख पहले तो लोगों को लगा कि वो जज्बात की रव में विनोद कांबली को मात देने के इरादे से ऐसा कर रहे हैं, पर बात कुछ और थी।

लगातार दो हार के बाद मिली जीत का सुकून कप्तान युवराज आंखे बंद कर महसूस कर रहे थे, वहीं टीम की मालकिन सोंड़ी कुड़ी प्रीति जिंटा ब्रेट ली के गले में बांहें डाल कर बधाईयां देते अघा नहीं रहीं थीं।

अब ऐसे माहौल में श्रीसांत के टेसुए दिखे वीआरवी सिंह और कुमार संकारा को। प्रीति को जल्दी फुर्सत मिलती न देख ये दोनों श्रीसांत को शांत कराने आ धमके लेकिन वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे...श्रीसांत रोए और हुलक-हुलक कर रोए। उन्हें उम्मीद थी मालकिन आंसू पोछने आएंगी लेकिन उन्होंने तो पत्रकारों को टके सा जवाब दे दिया कि टीम की पहली जीत है वो अभी सिर्फ उसे ही इन्ज्वाय कराना चाहती हैं।

सचमुच रेस कोर्स में दांव लगाने के बाद रेसलर घोड़े के चोटिल खुरों की फिक्र नहीं करता। उसे तो बस अंजाम का अंदेशा सताता रहता है।


जीत का सुकून भोगने के बाद जब कप्तान युवराज होश में आए तो उन्हें पता चला कि हरभजन ने उनके करीबी दोस्त श्रीसांत के गाल पर तमाचा बजा दिया है। वो भी बस इत्ती सी बात पर कि श्रीसांत भज्जी पाजी को हार्डलक बोलने चले गए थे। युवराज ने पुरस्कार वितरण के दौरान हरभजन को अपने हाव-भाव से जता दिया कि वो हरभजन के दोस्त के साथ ही विरोधी खेमें के कप्तान भी हैं।

दोस्त के तेवर देखकर हरभजन बैकफुट पर आए और श्रीसांत को अपना छोटा भाई बताने लगे। श्रीसांत भी मामले को रफा-दफा करने वाले बयान देने लगे उन्होंने भी हरभजन को अपना बड़ा भाई बताया, पर इस भाई चारे का अंतर साफ दिखा श्रीसांत जहां मैच के दौरान उत्तेजना को आम बात बता रहे थे वहीं हरभजन अपनी गलती को सिरे से नकार रहे थे। बमक रहा था तो आस्ट्रेलियाई मीडिया वो न हरभजन को बख्शने के मूड में था और न ही श्रीसांत को। उसे तो पिछली करतूतों को भी सच साबित करने का मौका मिल गया था।

सच भी है दूध धुला दोनों में से कोई है भी नहीं। पहले भी इन दोनों के बदमिजाजी के चर्चे हुए हैं लेकिन क्रिकेट के महासागर में (हिंस्दुस्तान) इन दोनों के लिए भावना का ऐसा ज्वार भाटा आया कि हर कोई सुनामी को डर गया। नतीजतन दोनो बरी हो गए। पर इस बार किसी सुनामी का डर नहीं था इस लिए इन्हें सबक सिखाने की ठानी गई।

मामला बिगड़ता देख हरभजन ने ढिठाई छोड़ गलती मान ली और माफी मांग ली। साथ ही भरोसा भी दिया आगे कभी ऐसी गलती नहीं दोहराने का। भज्जी पा जी के गलती स्वीकार करते ही उनकी टीम के कोच लालचंद राजपूत भी कटघरे में गए क्योंकि वो घटना स्थल पर मौजूद रहते हुए उसे रोकने में नाकाम रहे थे। इसलिए उन्हें अपनी आधी मैच फीस गंवानी पड़ी, जबकि हरभजन को लगा पूरे दो करोड़ नब्बे लाख रुपये का चूना और साथ ही ग्यारह मैचों का प्रतिबंध।

हरभजन को क्रिकेट जगत में आक्रामक और कभी हार नहीं मानने वाले खिलाड़ी के रूप में जाना जाता था। उनकी इस आक्रामकता को अरबों की जनसंख्या का समर्थन भी हासिल था। भज्जी ने अपनी करतूत से पैसा तो गंवाया ही भारतीय जन समुदाय का अब तक उन पर कायम भरोसा भी खो दिया। तो क्या वापसी के बाद भज्जी के खेल की आक्रामकता पर भी प्रभाव पड़ेगा। इस सवाल का जवाब बारह मैचों के बाद यानी भज्जी की वापसी के साथ ही मिल सकेगा। रही बात भारतीय टीम के लिए हरभजन की अहमियत की तो वने डे टीम के कप्तान धोनी ने हरभजन पर फैसले से पहले उनकी करतूत को माफ करने के योग्य बता कर जता दी है।

2 comments:

Richa Sen said...

कभी कभार एक तमाचा बहुत भारी पड़ जाता है.

Udan Tashtari said...

बड़ा मंहगा तमाचा रहा.